नई दिल्लीः केंद्र सरकार के तीनों नए क्रिमिनल लॉ के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है। याचिकाकर्ता ने इसके अमल पर रोक की मांग की है और अनुरोध किया है कि एक्सपर्ट कमिटी का गठन करके कानून की व्यवहारिकता परखें। सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट ऑन रेकॉर्ड कंवर सिद्धार्थ की ओर से अर्जी दाखिल की गई है। तीनों कानून भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य संहिता एक जुलाई से आईपीसी, सीआरपीसी और इंडियन एविडेंस एक्ट की जगह लेंगे। केंद्र सरकार ने इसके लिए नोटिफिकेशन जारी कर रखा है।
‘कानूनों का टायटल ठीक नहीं’
अंजली पटेल और छाया मिश्रा की ओर से दाखिल अर्जी में कहा गया है कि नए कानूनों का टाइटल ठीक नहीं है। जो टाइटल रखा गया है, उसके हिसाब से विधान की व्याख्या नहीं है और न ही वह उद्देश्य पूरा कर रहा है। नए कानून का जो नाम है वह स्पष्ट नहीं है, साथ ही कानून की धाराओं में कई विरोधाभास हैं। याचिका में कहा गया है कि जहां तक भारतीय न्याय संहिता का सवाल है तो इसमें ज्यादातर धाराएं आईपीसी की तरह ही रखी गई हैं। साथ ही भारतीय न्याय संहिता यानी बीएनएस में संगठित अपराध को भी शामिल किया गया है, जिसमें वाहन चोरी, जेबतरासी, परीक्षा के क्वेश्चन पेपर की बिक्री और अन्य तरह के संगठित अपराध को शामिल किया गया है।
1 जुलाई से लागू हो रहे नए कानून
संगठित अपराध की परिभाषा में कहा गया है कि अगर संगठित गिरोह की हरकत से नागरिकों में यह आमतौर पर फीलिंग हो कि उन्हें असुरक्षा हो रही है तो यह अपराध बनेगा। असुरक्षा की भावना वाली बात स्पष्टता के साथ परिभाषित नहीं है। साथ ही कहा गया है कि भारतीय न्याय संहिता में गैंग को परिभाषित नहीं किया गया है। साथ ही याचिका में कहा गया है कि किसी भी अपराध के मामले में 15 दिन के पुलिस रिमांड लिए जाने का प्रावधान है और यह गिरफ्तारी के 40 दिन या 60 दिन के दौरान कभी भी लिया जा सकेगा। इस तरह से यह प्रावधान एक तरह से इस दौरान जमानत के प्रावधान को प्रभावित करेगा। गौरतलब है कि मौजूदा प्रावधान यह है कि गिरफ्तारी के 15 दिनों के भीतर ही रिमांड लिया जा सकता है।गौरतलब है कि भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), भारतीय नागिरक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम एक जुलाई से लागू होने जा रहा है। भारतीय न्याय संहिता में 357 धाराएं हैं। पुराने औपनिवेशिक काल के कई शब्दावली को हटा दिया गया है। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के तहत तमाम कानूनी प्रावधान किए गए हैं।
पहले भी नए कानून को दी गई चुनौती
तीनों नए कानून को लागू किए जाने से ठीक पहले इसे फिर से सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। हालांकि इससे पहले भी इस कानून को अलग-अलग आधार पर चुनौती दी गई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को कोई राहत नहीं दी थी। 20 फरवरी को उस याचिका को खारिज कर दिया गया था, जिसमें नए क्रिमिनल लॉ को चुनौती दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच ने राहत देने से मना किया था और कहा था कि कानून अभी अमल में नहीं है। वहीं 20 मई को भी सुप्रीम कोर्ट ने अर्जी खारिज की थी। इसी तरह एक अन्य याचिका केरल हाई कोर्ट में एडवोकेट पीवी जीवेश की ओर से दाखिल कर हिंदी और संस्कृत शब्दावली पर ऐतराज जताया था। सुप्रीम कोर्ट से मामले में याचियों को राहत नहीं मिली है ऐसे में नई अर्जी पर याची को सुप्रीम कोर्ट से क्या राहत मिलेगी? यह सवाल कायम है।
लेखक के बारे में
राजेश चौधरी 2007 से नवभारत टाइम्स से जुड़े हुए हैं। वह दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट, निचली अदालत और सीबीआई से जुड़े विषयों को कवर करते हैं और स्पीड न्यूज में भी आपको इस बारे में खबर देते रहेंगे। यदि आपके पास कोर्ट से जुड़े मामलों की कोई सूचना है तो आप उनसे इस ईमेल अड्रेस – journalistrajesh@gmail.com – पर संपर्क कर सकते हैं।… और पढ़ें