नई दिल्ली: यह कहानी है हरियाणा से सटे एक राज्य राजस्थान में सबसे ताकतवर राज्य की नींव रखने वाले पृथ्वीराज तृतीय की, जो 1192 ईसवी तक चौहान (चाहमान) वंश के एक राजपूत योद्धा राजा थे। 1177 में सिंहासन पर बैठने के बाद युवा पृथ्वीराज को एक ऐसा राज्य विरासत में मिला जो उत्तर में स्थानेश्वर (जिसे सम्राट हर्ष के राज में थानेसर भी कहते थे) से लेकर दक्षिण में मेवाड़ तक फैला हुआ था। सत्ता संभालने के तुरंत बाद उन्हें अपने चचेरे भाई नागार्जुन के विद्रोह का सामना करना पड़ा, जिसने सिंहासन पर अपना दावा पेश किया। विद्रोह को कुचलने के बाद पृथ्वीराज ने अपना ध्यान पास के भादानकों के राज्य पर केंद्रित कर दिया। भादनकों ने दिल्ली के आसपास चौहानों के कब्जे वाले इलाकों के लिए लगातार खतरा पैदा किया था, लेकिन 1182 से कुछ समय पहले ही इस खतरे का खात्मा कर दिया गया। जानते हैं कि पृथ्वीराज चौहान की वो कहानी, जो इतिहास से लेकर जनश्रुतियों तक में मौजूद है।

चंदेलों और गढ़वालों ने पृथ्वीराज के खिलाफ बनाया गठबंधन

1182 में पृथ्वीराज ने जेजाकभुक्ति के शासक परमर्दि देव चंदेल को हराया। चंदेलों पर जीत से जहां पृथ्वीराज की प्रतिष्ठा बढ़ी, वहीं, इससे उनके दुश्मनों में भी इजाफा हुआ। इससे पृथ्वीराज के दुश्मनों चंदेलों और उनके साथियों यानी कन्नौज के गढ़वाल शासक जयचंद जैसों के बीच एक गठबंधन बन गाया।
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जयचंद की बेटी को ले भागे थे पृथ्वीराज, इससे हुई दुश्मनी

कई इतिहास की किताबों में लिखा गया है कि पृथ्वीराज ने एक स्वयंवर के दौरान जयचंद्र की बेटी संयोगिता को भरी सभा से ले भागे थे। क्योंकि पृथ्वीराज और संयोगिता के बीच काफी प्यार था। मगर, जयचंद को यह बेहद नागवार लगता था। उसने संयोगिता की शादी के लिए दूर-दूर के राजाओं को स्वयंवर में न्यौता दिया, मगर पृथ्वीराज को उसने यह न्यौता दिया। यहां तक कि पृथ्वीराज को नीचा दिखाने के लिए उनकी एक प्रतिमा द्वारपाल के रूप में महल के दरवाजे पर रखवा दिया। पृथ्वीराज के दरबारी कवि चंदबरदाई की पृथ्वीराज रासो के अनुसार, पृथ्वीराज ने ऐन मौके पर स्वयंवर में दाखिल हुए और माला लिए संयोगिता को ले भागे।

prithviraj and sanyogita

पंजाब जीतने के साथ ही मुहम्मद गोरी जब दिल्ली की ओर बढ़ा

इतिहासकार डॉ. दानपाल सिंह के अनुसार, पृथ्वीराज ने एक रोमांटिक और तेजतर्रार कमांडर के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त की। वहीं, अफगानिस्तान के काबुल से करीब 400 किलोमीटर दूर एक प्रांत है-गौर, जहां का मुइज्जु अल दीन मुहम्मद इब्न साम यानी मुहम्मद गोरी उत्तरी भारत में अपना अधिकार स्थापित करने की कोशिश कर रहा था। इसमें गजनी और गौर के अपने प्रभुत्व को बढ़ाने के लिए सिंध , मुल्तान और पंजाब को जीतना शामिल था। 1190 के अंत में मुहम्मद गोरी ने बठिंडा पर कब्जा कर लिया, जो पृथ्वीराज के साम्राज्य का एक हिस्सा था। जैसे ही मुहम्मद गोरी आगे बढ़ा, वैसे ही दिल्ली में पृथ्वीराज के प्रतिनिधि ने मदद मांगी। इस पर फौरन पृथ्वीराज ने मुहम्मद गोरी के खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया और दोनों की सेनाएं हरियाणा के करनाल के पास हारतरौरी (तराइन) में आमने-सामने आ गईं।

तराइन की पहली जंग, जिसमें गोरी को मिली हार

दोनों सेनाओं की भिड़ंत 1191 में दिल्ली से लगभग 70 मील (110 किमी) उत्तर में तरौरी (अब हरियाणा राज्य में) में हुई। भीषण लड़ाई के दौरान मुहम्मद गोरी गंभीर रूप से घायल हो गया और उसकी सेना अस्त-व्यस्त होकर पीछे हट गई। उसे पृथ्वीराज ने अफगानिस्तान तक खदेड़ दिया। मध्यकालीन भारत जैसी चर्चित किताब के लेखक और इतिहासकार सतीश चंद्र के मुताबिक, पृथ्वीराज ने 3 लाख की सेना उतारी, जिसमें घुड़सवारों की संख्या ज्यादा थी और 300 हाथी थे। वहीं, मुहम्मद गोरी की सेना में 1.20 लाख सैनिक, भारी घुड़सवार और 10 हजार तीरंदाज थे।

prithviraj and muhammad ghori

जयचंद जैसे गद्दारों ने दिया धोखा, पृथ्वीराज पराजित

इतिहासकार डॉ. दानपाल सिंह के अनुसार, अपनी हार से तिलमिलाए मुहम्मद गोरी ने फारसियों, अफगानों और तुर्कों से मिलकर दोबारा एक मजबूत सेना खड़ी की। इस बीच उसे जयचंद जैसे हिंदू राजाओं का भी साथ मिला। और 1192 में वह फिर से तराइन आया। पृथ्वीराज ने मुहम्मद गोरी से मुकाबला करने के लिए एक विशाल सेना जुटाई, लेकिन राजपूत शिविर के भीतर की अंदरूनी लड़ाई और दुश्मनी ने उसकी स्थिति को कमजोर कर दिया था।

सूर्यास्त के नियम बनी जंग में पृथ्वीराज की हार की वजह

जहां पहली लड़ाई में पृथ्वीराज की सेना की ताकत पर जोर था, वहीं दूसरी लड़ाई गतिशीलता का एक परीक्षण थी। मुहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज की अग्रिम पंक्तियों को परेशान करने के लिए घुड़सवार तीरंदाजों का इस्तेमाल किया। जब पृथ्वीराज की सेना के कुछ हिस्से पंक्ति तोड़कर पीछा करने लगे, तो भारी घुड़सवार सेना ने उन्हें नष्ट कर दिया। सबसे बड़ी वजह सूर्यास्त का नियम था। महाभारत काल के समय से राजपूत राजा सूर्यास्त के बाद युद्ध नहीं करते थे। मुहम्मद गोरी को जब यह बात जयचंद से पता चली तो उसने घात लगाकर अपने-अपने शिविरों में सो रही पृथ्वीराज की आर्मी पर हमला बोल दिया। इस अचानक हमले में पृथ्वीराज को संभलने का मौका नहीं मिला और वह हार गए।

पृथ्वीराज चौहान का इतिहास कई रासो महाकाव्यों से लेकर मुस्लिमों की किताबों में मिलता है। उनकी मृत्यु के बारे में कई सत्य धुंधले हैं। ऐसा लगता है कि इन हकीकत को जानबूझकर छिपाया गया या कई किताबों से मिटाया गया। जरूरत है कि इतिहास की पड़ताल उस वक्त की कहानियों और लोकोक्तियों को देखते हुए भी की जाए।

डॉ. दानपाल सिंह, इतिहासकार

मोहम्मद गोरी कितनी बार पृथ्वीराज से हारा

हम्मीर हठ महाकाव्य के अनुसार पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गोरी को 7 बार हराया है। पृथ्वीराज प्रबंध के अनुसार 8 बार, पृथ्वीराज रासो के अनुसार 21 बार, जबकि प्रबंध चिंतामणि के अनुसार 23 बार हराया है। वहीं, मुस्लिम लेखकों के सोर्स में केवल तराइन की 2 लड़ाइयों का ही जिक्र है। कहा जाता है कि पृथ्वीराज ने गोरी को 17 बार बंदी बनाया और फिर छोड़ दिया। वहीं, प्रबंध कोश में 20 बार हराने का जिक्र है।

शब्दभेदी बाण से मोहम्मद गोरी को मार डाला!

डॉ. दानपाल सिंह के अनुसार, तराइन के दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की हार के बाद मुहम्मद गोरी उन्हें और उनके मित्र चंदबरदाई को बंदी बनाकर अपने साथ ले गया। कहा जाता है कि सजा के तौर पर गर्म सलाखों से पृथ्वीराज की आंखें फोड़ दी गई। मुहम्मद गोरी को पृथ्वीराज चौहान के शब्दभेदी बाण चलाने वाली कला के बारे में पता चला और चंदबरदाई के कहने पर आखिरी इच्छा के रूप में इसके प्रदर्शन की इजाजत दे दी।
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चार बांस, चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण..

पृथ्वीराज रासो के अनुसार, पूरे गोर में यह मुनादी करा दी गई कि भारत का एक राजा शब्दभेदी बाण चलाता है। उसे देखने के लिए सभी लोग जमा हुए। सुल्तान गोरी का भी मंच सज गया। दूसरी ओर से जंजीरों में बांधकर पृथ्वीराज को भरी सभा में लाया गया।
यहीं पर ‘चार बांस, चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण… ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान’ का जिक्र आता है। पृथ्वीराज चौहान के लिए मोहम्मद गोरी की दूरी मापने के लिए चंद बरदाई का यह संकेत काफी था। जेसे ही मुहम्मद गोरी ने शाबाश बोला, आवाज सुनकर पृथ्वीराज ने शब्दभेदी बाण चलाया, जो सीधे गोरी की गर्दन में जा लगा। वह मंच से गिर पड़ा और उसकी मौत हो गई।

पृथ्वीराज की मृत्यु को लेकर इतिहासकारों में मतभेद

मुहम्मद गांरी की मृत्यु की तारीख और सम्राट पृथ्वीराज की मृत्यु की तारीख को लेकर भी इतिहासकारों में मतांतर है। ऐतिहासिक तौर पर बताया जाता है कि मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज को कैद करने के बाद उसकी हत्या करवा दी थी और इस घटना के छह वर्ष बाद 1206 ईस्वी में उसकी मृत्यु हुई। गंगाधर ढोबले ही लिखते हैं कि जाटों की खोखर नामक जमात ने झेलम नदी के किनारे उसे मार डाला, जहां उसकी कब्र भी है। गजनी में पृथ्वीराज की समाधि है।

दिनेश मिश्र

लेखक के बारे में

दिनेश मिश्र

दिनेश मिश्र, NBTऑनलाइन में असिस्टेंट एडिटर हैं। 2010 में दैनिक जागरण से पत्रकारिता की शुरुआत की। बीते 14 साल में अमर उजाला, राजस्थान पत्रिका और दैनिक भास्कर जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में प्रिंट, टीवी और डिजिटल तीनों का अनुभव हासिल किया। पर्सनल फाइनेंस, पॉलिटिकल, इंटरनेशनल न्यूज, फीचर जैसी कैटेगरी में एक्सप्लेनर और प्रीमियम स्टोरीज करते रहे हैं, जो रीडर्स को सीधे कनेक्ट करती हैं।… और पढ़ें

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