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‘पोटो हो’ जिनकी तीर से निकलती थी आग, थर्राते थे गोरे, हाथी पर चढ़ कर फांसी देने आया था अंग्रेज अफसर

‘पोटो हो’ जिनकी तीर से निकलती थी आग, थर्राते थे गोरे, हाथी पर चढ़ कर फांसी देने आया था अंग्रेज अफसर
चाईबासाः 1857 की क्रांति के पहले अंग्रेजी सेना के खिलाफ कई बड़ी लड़ाई लड़ी गई। इस लड़ाई में एक तरफ होती थी उस दौर की आधुनिक हथियार से लैस दुनिया की सबसे ताकतवर सेना, तो दूसरी ओर थे तीर-कमान के साथ प्रकृति के पुजारी। कोल्हान क्षेत्र में ‘पोटो हो’ के नेतृत्व में आदिवासियों ने ब्रिटिश हुकूमत को चुनौती दी थी। अमर शहीद ‘पोटो हो’ को नई पीढ़ी भले ही भूल चुकी है, लेकिन इस महान क्रांतिकारी का नाम भगत सिंह से कमतर नहीं।
कोल्हान विद्रोह की कहानी लंबी है। 1820 में कोल क्रांति के बाद अंग्रेजी हुकूमत और दिकुओं के खिलाफ जो आग लगी थी, वो फौरी तौर पर भले ही बुझ गई हो, लेकिन अंदर-अंदर ये धधक रही थी। जबरन टैक्स वसूली, शोषण के खिलाफ ‘पोटो हो’ ने बिगुल फूंक दिया था। कोल विद्रोह और आदिवासियों के बगावत को देखते हुए कैप्टन विलकिंसन ने सिफारिश की थी कि कोल्हान में अंग्रेज खुद राज न करें, बल्कि यहां के स्थानीय राजाओं को अधिकार दिया जाए। कैप्टन विलकिंगन उस वक्त छोटानागपुर में अंग्रेजों के पॉलिटिक्ल एजेंट थे। इस सिफारिश के पीछे कैप्टन विलकिंसन ने तीन तर्क दिए। पहला तर्क था 1821 में र्कनल रॉसेज और ‘हो’ के बीच हुई संधि टूट चुकी थी। दूसरा हो समाज डायन प्रथा और निरक्षरता में जी रहा था। तीसरा मिशनरीज के जरिए आदिवासियों का बड़े पैमाने पर ईसाईकरण करना। शुरुआत में अंग्रेजों ने इसे नहीं माना, लेकिन 1836 में कर्नल विलकिंसन को कोल्हान में डायरेक्ट एक्शन की इजाज दे दी।

पोटो हो की लोकप्रियता और नेतृत्व क्षमता के अंग्रेज भी थे कायल

‘पोटो हो’ की कहानी का लिखित दस्तावेज को जो मिलता है, वो अग्रेजों की ओर से तैयार किया गया, इसलिए ज्यादातर जानकारियां एकपक्षीय ही है। लेकिन किस्से-कहानियों में पोटो हो सदी से जिंदा है। इसमें कोई शक नहीं की कि पोटो हो के नेतृत्व क्षमता के अंग्रेज भी कायल थे। वरिष्ठ पत्रकार विवेक सिन्हा बताते हैं कि विलकिंसन की चिट्ठियों और उस दौर के इतिहास से जो जानकारी मिलती है कि पोटो हो आदिवासियों में बेहद लोकप्रिय थे। अंग्रेजों के खिलाफ अपने लोगों को इकट्ठा करने की उनकी क्षमता शानदार थी। हजारों लोग पोटो हो की एक जुबान पर जान देने के लिए तैयार रहते थे।

पोटो हो ने साथियों के साथ जंगल में बड़ी पूजा की

1838 के आखिरी महीने में पोटो हो ने अपने साथियों के साथ मिलकर एक बड़ी पूजा की, जिसमें अंग्रेजों को मात देने की मन्नत मांगी गई। गांव-गांव में तीर भेजकर युद्ध के लिए तैयार रहने के लिए कहा गया। पोटो हो को बड़ा जनसमर्थन प्राप्त हुआ। पोटो हो अपने सीमित संसाधनों के बावजूद बेहतरीन रणनीतिकार और कुशल योद्धा थे। उन्हें अंग्रेजों की ताकत का पूरी तरह से इल्म था, इसलिए ‘साहब लोगों को खत्म करो’ के किशन की तैयारी व्यापक पूरजोर थी। अंग्रेजों के आक्रमण से पहले जंगल में अनाज, बर्तन और जरूरी चीजें इकट्ठा कर ली थी।

400 सैनिकों के साथ कैप्टन आर्मस्ट्रांग को सौंपी जिम्मेदारी

कैप्टन विलकिंगन को पोटो हो की इन सारी तैयारियों की खबर मिल रही थी। इसलिए 12 नवंबर 1837 को खुद चाईबासा पहुंचे। 17 नवंबर 1837 को विलकिंसन ने कैप्टन आर्मस्ट्रांग को पोटो हो की क्रांति को खत्म करने के लिए रवाना किया। उसके साथ 400 सैनिक थे, जो रामगढ़ कैंट से पहुंचे थे। विलकिंसन को भी पोटो हो के नेतृत्व क्षमता का भान था और उनकी तैयारियों से अंग्रेजों के खेमे में भी दहशत था।

4 अंग्रेज सैनिक मारे गए, 3 दर्जन घायल

19 नवंबर 1837 को अंग्रेजी सेना सेरंगसिया घाटी पहुंची। दोनों ओर घने जंगल और चट्टानी पहाड़ियों के बीच अंग्रेजी सेना पहुंची, तो तीर ने रास्ता काट दिया। ये चेतावनी थी कि आगे मत बढ़ो। अंग्रेजों ने इसे हल्के में लिया और सेना आगे बढ़ने लगी। लेकिन जैसे ही कुछ गज आगे कदम बढ़े तीरों की बारिश होने लगी। चारों तरफ से तीर बरसने लगे। अंग्रेजों की फौज दहशत में आ गई। इस हमले में अंग्रेजी रिकॉर्ड के मुताबिक 4 अंग्रेज सैनिक मारे गए। तीन दर्जन सैनिकों को तीर लगा और वे घायल हो गए।

कई गांवों में अंग्रेजी सेना ने लूटपाट की और उत्पात मचाया

इसके बावजूद सेंरगसिया घाटी से निकल कर विलकिंसन की फौज जगन्नाथपुर पहुंच चुकी थी। यहां अंग्रेजों ने नई रणनीति बनाते हुए पोटो हो के गांव राजबासा पर हमले की साजिश रची। 20 नवंबर 1837 को हमला हुआ, तो पोटो हो नहीं मिले। हालांकि 6 लोगों को अंग्रेजों ने पकड़ लिया। 21 नवंबर को विलकिंसन ने पोटो हो के पिता को भी गिरफ्तार कर लिया। राजाबासा गांव को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया। अनाज लूट लिए, घरों में आग लगा दी गई। 22 नवंबर को विलकिंसन की फौज ने टोडंग हातू पर हमला किया। गांव खाली था, लेकि आठ महिला और एक आदमी को पकड़ लिया गया। बाद में उनकी हत्या कर दी गई। 24 नवंबर को कैप्टन आर्मस्ट्रंग की सेना कोयल बुरु गांव पहुंची। लेकिन तब तक पोटो हो और उनके सिपाही दूसरी जगह के लिए निकल चुके थे। अंग्रेजों ने कोयल बुरु, रुइया, निजाम रुइया जैसे दर्जनों छोटे-छोटे गांवों पर कहर बरपाते हुए लूटपाट की। गांव के गांव जला दिए।

अंग्रेजी फौज ने लूटपाट और अत्याचार किया

अंग्रेज फौज रुइया गांव में 11 दिसंबर तक डेरा डाले रही। 22 दिनों के दौरान अंग्रेजों ने जबरदस्त लूटपाट की, अत्याचार किया। लगभग एक हजार मवेशियों को अपने कब्जे में ले लिया। अनात की बोरियां इतनी हो गई कि ढोने वाले थक गए। आखिरकार सेरंगसिया घाटी में पोटो हो और उनके साथियों को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया।

पोटो हो और 5 साथियों को सुनाई गई फांसी की सजा

कैप्टन विलकिंसन को इसकी खबर मिली, तो उसके मन में हो आदिवासियों के लिए इतनी नफरत थी कि खुद ही फांसी की सजा देने के लिए विलकिंसन चाईबासा से जगन्नाथपुर पहुंचा। इस दौरान एक जगह वो हाथी से गिरकर घायल भी हुआ, लेकिन रुका नहीं। 25 दिसंबर 1837 को ट्रायल शुरू किया। पोटो हो और पांच क्रांतिकारियों के खिलाफ 31 दिसंबर 1837 तक सुनवाई चली और आखिर में जो फैसला तय था, वही सुनाया गया। पोटो हो और पांच साथियों को सरेआम सजा फांसी की सजा सुनाई गई।

पोटो हो की यादें 190 सालों से है जिन्दा

1 जनवरी 1838 को पोटो, बराई और नारा को हजारों हो आदिवासियों के सामने फांसी पर लटका दिया गया। 2 जनवरी को बोरा और पंडवा को सेरंगसिया गांव में फांसी दी गई। इसके बाद कैप्टन विलकिंसन की सेना 22 जनवरी 1838 को वानस लौट गई, लेकिन इस दो महीने के दौरान कोल्हान ने अंग्रेजों के अत्याचार का वो दौर देखा, जिसके जख्म आज भी ताजा है। किस्से, कहानियों और गीतों में ‘पोटो हो’ और उनके साथियों की शहादत कोल्हान में पिछले 190 सालों से जिन्दा है।

रवि सिन्हा के बारे में

रवि सिन्हा सीनियर डिजिटल कंटेंट प्रोड्यूसर

नवभारत टाइम्स डिजिटल के बिहार-झारखंड टीम में कार्यरत। राजस्थान पत्रिका में दिसंबर 2005 से लेकर अप्रैल 2020 तक झारखंड प्रतिनिधि के रूप में कार्य करने का मौका मिला। दूरदर्शन रांची और आकाशवाणी केंद्र के प्रादेशिक समाचार एकांश में आकस्मिक सहायक संपादक के रूप में 17 साल का सफर। रांची एक्सप्रेस, आज, देशप्राण समेत कई अन्य हिन्दी और उर्दू अन्य समाचार पत्रों और वेबपोर्टल के लिए लंबे समय तक स्वतंत्र रूप से लेखन। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से 2000 में संवाद समिति एक्सप्रेस मीडिया सर्विस से पत्रकारिता की शुरुआत के बाद 2001 से झारखंड की राजधानी रांची अब कर्मस्थल। देश-विदेश की सामाजिक और राजनीतिक खबरों में विशेष रूचि। पत्रकारिता की हर विधा को सीखने की लगन और चाहत।Read More

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