भुवनेश्वर: ओडिशा के राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्र में पटनायक सबसे प्रभावशाली ताकत रहे हैं। दो पटनायक परिवारों के केवल तीन व्यक्तियों- जानकी बल्लभ (जेबी), बीजू और उनके बेटे नवीन पटनायक ने आजादी के बाद से 77 में से 45 सालों तक मुख्यमंत्री के रूप में राज्य पर शासन किया है। हालांकि पिछले 32 सालों में ओडिशा ने 11 मुख्यमंत्री देखे हैं लेकिन पटनायकों का यहां एकछत्र राज रहा है। पटनायक ‘कर्णम’ जाति से आते हैं। इस समुदाय का एक अन्य प्रमुख उपनाम मोहंती है। वे राज्य की आबादी का लगभग 2% हिस्सा हैं। ओडिशा की राजनीति में उनकी प्रमुखता इतनी है कि कई लोग उन्हें (पटनायक) राजनीतिक जाति के रूप में भी देखते हैं।
6वीं बार मुख्यमंत्री बनने की राह पर नवीन पटनायक
अपने छठे कार्यकाल के लिए कोशिश कर रहे नवीन पटनायक मार्च 2000 से इस पद पर हैं। अगर दोबारा चुने जाते हैं तो अगस्त में वह सिक्किम के पूर्व मुख्यमंत्री पवन चामलिंग को पीछे छोड़ देंगे। वे देश के सबसे लंबे समय तक रहने वाले मुख्यमंत्री बन जाएंगे। उनके पिता बीजू पटनायक 1961 से 1963 और 1990 से 1995 तक ओडिशा के सीएम थे। जानकी बल्लभ ने 1980 से 1989 तक और फिर 1995 से 1999 तक 14 सालों तक राज्य पर शासन किया।
नवीन पटनाक का उत्तराधिकारी कौन?
77 साल के कुंवारे नवीन पटनायक ने पहले कहा था कि उनके परिवार का कोई भी सदस्य राजनीति में नहीं आएगा। हालांकि यह अटकलों का विषय रहा है कि उनके भतीजे अरुण पटनायक या उनकी भतीजी गायत्री सत्ता संभाल सकते हैं। जो कि उनके बड़े भाई प्रेम की संतान हैं। वहीं हाल ही में नवीन पटनायक के सहयोगी वी के पांडियन के बीजद के दूसरे नंबर के नेता के रूप में उभरने के साथ ही यह विवाद शांत हो गया है।
मुख्यमंत्री पद पर अगड़ी जाति का कब्जा
नवकृष्ण चौधरी (1950-1952 और 1952 से 1956) छह साल तक सीएम रहे। नीलमणि राउतराय (ओबीसी, 1977-1980) और दो आदिवासी हेमानंद बिस्वाल और गिरिधर गमांग को छोड़कर अन्य मुख्यमंत्रियों में बड़े पैमाने पर ब्राह्मण और कुछ राजपूत शामिल हैं। हेमानंद (दिसंबर 1989-मार्च 1990, दिसंबर 1999-मार्च 2000) और गिरिधर (फरवरी 1999 से दिसंबर 1999) का सीएम के रूप में कुल कार्यकाल 14 महीने था।
वोटरों के बीच जाति कभी बड़ा फैक्टर नहीं
रिटायर राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर आर के सतपथी ने कहा कि कर्णम और ब्राह्मण की कुल आबादी 10% से भी कम हैं लेकिन ओडिशा की राजनीति और व्यापार पर उनका दबदबा कायम है। समाजशास्त्र के पूर्व प्रोफेसर शुकदेब नाइक ने कहा कि कई अन्य राज्यों के विपरीत ओडिशा में मतदाताओं के बीच जाति कभी भी बहुत बड़ा फैक्टर नहीं रही है। हालांकि नेतृत्व की स्थिति पर बड़े पैमाने पर अगड़ी जातियों का कब्जा रहा है।
विपक्ष में भी पटनायक का दबदबा
समाजशास्त्र के पूर्व प्रोफेसर शुकदेब नाइक ने कहा कि गिरिधर और हेमानंद को अपवाद कहा जा सकता है क्योंकि उन्हें कांग्रेस आलाकमान की ओर से सांकेतिक तौर पर कुछ-कुछ महीनों के लिए मुख्यमंत्री बनाया गया था। राज्य में लगभग 22.8% आदिवासी और 17% अनुसूचित जाति और अनुमानित 50% से अधिक ओबीसी हैं। विपक्ष में भी नेतृत्व की स्थिति में पटनायक का दबदबा है। कांग्रेस की राज्य इकाई के अध्यक्ष शरत पटनायक और इसकी चुनाव समन्वय समिति के प्रमुख बिजय पटनायक, पूर्व मुख्य सचिव, कर्णम जाति से हैं। हालांकि सभी अलग-अलग कुलों से हैं।
कहां कौन भारी?
कांग्रेस के कद्दावर नेता जेबी के कुनबे के सदस्य के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं। जेबी के बेटे पृथ्वी बल्लव (47) कांग्रेस के टिकट पर बेगुनिया से अपनी राजनीतिक शुरुआत करना चाह रहे हैं। जेबी के दामाद सौम्य रंजन पटनायक घासीपुरा विधानसभा सीट से निर्दलीय मैदान में उतरे हैं। मीडिया कारोबारी सौम्य 2019 में बीजद विधायक चुने गए थे। उनके बड़े भाई निरंजन पटनायक, ओडिशा कांग्रेस के पूर्व प्रमुख, भंडारीपोखरी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं।
ओडिशा में कर्णम जाति का हर ओर प्रभाव
निरंजन और सौम्य के बड़े भाई दीप्ति रंजन पटनायक खनन से लेकर समुद्री भोजन तक में रुचि रखने वाले एक व्यापारिक साम्राज्य का नेतृत्व करते हैं। इस खनिज समृद्ध राज्य में कर्णम जाति का प्रभाव अलग-अलग क्षेत्रों- रियल एस्टेट, शिक्षा, मीडिया, समुद्री भोजन और खनन में देखा जा सकता है। कर्णम के स्वामित्व वाले एक अन्य व्यापारिक घराने एसएन मोहंती समूह ने बीजद को चुनावी बांड के रूप में लगभग 45 करोड़ रुपये का दान दिया। हालांकि वर्तमान राज्य बीजेपी प्रमुख मनमोहन सामल और पार्टी के प्रमुख ओडिशा चेहरे धर्मेंद्र प्रधान ओबीसी से हैं। समीर मोहंती जो पहले राज्य बीजेपी प्रमुख थे, कर्णम जाति से हैं। बीजेपी में दो उल्लेखनीय हस्तियां अपराजिता सारंगी और बैजयंत पांडा ब्राह्मण हैं।
लेखक के बारे में
सुजीत उपाध्याय ने एचएनबी गढ़वाल यूनिवर्सिटी श्रीनगर, उत्तराखंड से एमए इन मास कम्युनिकेशन की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद हिन्दुस्तान और दैनिक जागरण मेंं बतौर रिपोर्टर काम किया। ज़ी मीडिया से डिजिटल में शुरुआत। इंडिया डॉट कॉम हिंंदी में दो साल काम करने के बाद नवभारत टाइम्स ऑनलाइन से जुड़े।… और पढ़ें